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नेहरू बोले, रामलला की मूर्ति हटाइए:DM ने कहा- इस्तीफा दे दूंगा पर ऐसा नहीं करूंगा; ताला लगने से ढांचा गिरने तक की कहानी

अयोध्या और राम मंदिर की कानूनी लड़ाई का दूसरा दौर तब शुरू होता है, जब 22-23 दिसंबर, 1949 की दरमियानी रात विवादित ढांचे के अंदर अचानक रामलला दिखाई दिए। यूपी से दिल्ली तक सब हिल गए। पीएम नेहरू ने मूर्ति हटाने का आदेश दिया। लेकिन तब के फैजाबाद जिले के डीएम ने साफ कह दिया कि इस्तीफा दे दूंगा, पर मूर्तियां नहीं हटाऊंगा। 1986 में कोर्ट के आदेश के 40 मिनट बाद ही विवादित ढांचे का ताला खोल दिया गया। 1989 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मंदिर का शिलान्यास कराया। फिर 6 दिसंबर, 1992 की दोपहर बेकाबू भीड़ ने विवादित ढांचा गिरा दिया। दूसरे एपिसोड में पढ़िए 1949 में रामलला की मूर्तियां प्रगट होने से लेकर 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने तक की कहानी… 23 दिसंबर 1949, अयोध्या थाना कॉन्स्टेबल नंबर- 7 माता प्रसाद हांफते हुए थाने में घुसते ही बोला- “साहब, बहुत बड़ी बात हो गई है।”
थानेदार रामदेव दुबे ने अखबार मोड़कर रखा और बोले, “क्या हो गया?”
“बाबरी मस्जिद मतलब जन्मभूमि वाले ढांचे के अंदर रामलला की मूर्ति रखी है।” थानेदार ने चौंककर पूछा- “किसने रखी?”
“साहब, 50-60 लोग थे। सब भीड़ में मिल गए। तीन के नाम अभय रामदास, राम शुक्ल दास, सुदर्शन दास… पक्का पता हैं, बाकी के नहीं मालूम।” दुबे ने पूछा, “मस्जिद का ताला कैसे खुला?” नौकरी पर संकट आता देख घबराए माता प्रसाद ने कहा- “साब उन्होंने ताला तोड़ दिया। कॉन्स्टेबल नंबर- 70 हंसराज ने मना भी किया, लेकिन वो नहीं माने। सीढ़ियों और दीवारों से चूना खुरचकर अंदर जगह बनाई और मूर्ति रख दी।” दुबे ने पूछा, अभी क्या माहौल है?
“साब, भीड़ बढ़ती जा रही है। लोग वहां भजन-कीर्तन कर रहे। कुछ लोग कह रहे कि रामलला प्रगट हुए हैं। रात में वहां ड्यूटी पर तैनात कॉन्स्टेबल अब्दुल बरकत भी यही कह रहा।” मंदिर के बरामदे के बाहर शोर बढ़ रहा था। किसी ने फिर से थाने में खबर दी भीड़ 5-6 हजार तक पहुंच गई है। सब ढांचे के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं। दुबे ने फौरन ऊपर खबर भेज दी। खबर मिलते ही फैजाबाद कलेक्ट्रेट में अफरा-तफरी मच गई। कलेक्टर केके नायर टेबल पर फैली रिपोर्ट्स पढ़ रहे थे। एसपी उसी कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। एसपी ने कहा- “सर, अयोध्या में भीड़ 5 हजार से ऊपर हो चुकी है। फैजाबाद में भी तनाव है।”
नायर ने चश्मा ठीक किया- “थाना अयोध्या की FIR आ गई?” एसपी ने फाइल आगे बढ़ाई- “जी, सब-इंस्पेक्टर रामदेव दुबे की रिपोर्ट। धारा 147, 295, 448… तीन नामजद बाकी 50-60 अज्ञात। मस्जिद को ‘नापाक’ करने का जिक्र है।” उसी समय सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह कमरे में आए- “सर, हालात काबू से बाहर जा सकते हैं। धारा- 144 लगा देनी चाहिए। 145 के तहत इमारत कुर्क करके अपने कब्जे में कर लेनी चाहिए।” नायर ने पूछा- “भीड़ का मूड क्या है?” गुरुदत्त ने साफ कहा- “रामलला के ‘प्रगट होने’ को लोग चमत्कार मान रहे हैं। अगर किसी ने अब मूर्ति हटाने की बात की, तो ये कानून का सवाल नहीं रहेगा धर्म की लड़ाई बन जाएगी।” नायर कुछ सेकेंड चुप रहे। फिर बोले- “ठीक है, 144 लागू करो। इमारत कुर्क करके फैजाबाद नगर पालिका अध्यक्ष प्रिया दत्त राम को रिसीवर नियुक्त करो। पहले की स्थिति बहाल करने का कोई लिखित आदेश आने से पहले ‘यथास्थिति’ बन जानी चाहिए।” गुरुदत्त ने पूछा- “विवादित ढांचे पर ताला?”
नायर ने हल्की आवाज में कहा- “कागज पर हम ताले का आदेश नहीं देंगे। जमीन पर क्या होता है, ये रिसीवर तय करेगा।” उधर, दिल्ली में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक खबर पहुंची। नेहरू ने फाइल बंद करते हुए कहा- “ये क्या हो रहा है फैजाबाद में? मस्जिद में मूर्ति रख दी?” अफसर ने जवाब दिया- “जी, रिपोर्ट तो यही कहती है।”
नेहरू ने कहा- “उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से बात कराओ।” कुछ देर बाद पंत टेलीफोन लाइन पर थे। नेहरू ने कड़क आवाज में कहा- “पंत जी, ये बहुत खतरनाक मिसाल है। मस्जिद के अंदर मूर्ति रख दी गई है, इसे तुरंत हटवाइए। ये बात अभी सुलझानी होगी, नहीं तो और बड़ा विवाद बनेगा।” पंत ने कुछ रुककर जवाब दिया- “जी, मैं करवाता हूं।”
फोन कट गया। लखनऊ से फैजाबाद कलेक्टर को आदेश गया- “मूर्तियों को तुरंत हटाया जाए।” शाम तक फैजाबाद कलेक्ट्रेट में माहौल और भारी हो चुका था। जिलाधिकारी केके नायर ने एसपी से पूछा- “अगर हम आज रात मूर्ति हटाने की कोशिश करें, तो क्या होगा?”
एसपी ने सीधे जवाब दिया- “साहब, गोली चलानी पड़ेगी। बिना गोली के ये नामुमकिन है। ऐसे माहौल में कोई भी हिंदू हमारे साथ खड़ा नहीं होगा। सब कह रहे हैं, रामलला यहीं रहेंगे।” गुरुदत्त सिंह भी कमरे में थे। उन्होंने जोड़ा- “सर, मूर्तियां हटाई गईं तो दंगे भड़क सकते हैं। ये सिर्फ अयोध्या का मामला नहीं रहेगा, पूरा जिला सुलगने लगेगा।” नायर ने फाइल बंद की। कागज-कलम उठाई और बोल-बोलकर लिखते गए। “आयुक्त ने मूर्तियों को मस्जिद से हटाकर जन्मभूमि मंदिर ले जाने की योजना बताई है। हमने चर्चा की, लेकिन मैं साफ कह रहा हूं कि मैं इस विचार से सहमत नहीं हूं। इससे जिले की कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा है।” एसपी ने कहा- “सर, ये बात भी लिखिए कि लाइसेंसी हथियार रखने वालों से बंदूकें जमा कराना अभी मुमकिन नहीं। झड़प हुई तो गोलीबारी हो सकती है।” नायर ने वही बात कागज पर उतार दी। इसके बाद नायर ने लिखा- “हिंदू मूर्तियों को वहीं रहने देने के पक्ष में हैं। इनके लिए मरने-मारने को तैयार हैं। कांग्रेस में भी मुझे ऐसा कोई हिंदू नहीं मिला, जो मूर्ति हटाने के समर्थन में हो। जिले में एक पुजारी नहीं मिलेगा, जो किसी लालच में मूर्ति हटाने को तैयार हो।” नायर ने सुझाव दिया कि सरकार मस्जिद को कब्जे में ले और नियुक्त पुजारियों को छोड़कर हिंदुओं और मुसलमानों का प्रवेश बंद कर दे। मामला कोर्ट को सौंप दिया जाए। जब तक अदालत फैसला न दे, किसी को कब्जा न दिया जाए। इससे खून खराबा टल सकता है।” फिर नायर ने कलम थोड़ी देर रोकी और लिखा- अगर सरकार किसी भी कीमत पर मूर्तियां हटाने का फैसला करती है, तो मैं निवेदन करूंगा कि पहले मुझे कार्यमुक्त किया जाए। मेरा विवेक मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं देता। कमरे में सन्नाटा छा गया। एसपी और गुरुदत्त दोनों एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे।
एसपी ने धीरे से पूछा, “सर, क्या आप ये रिपोर्ट भेजेंगे?” नायर ने दस्तखत करते हुए कहा, “हां। ये रिपोर्ट नहीं, मेरे विवेक की गवाही है। जो भी हो, कल कोई ये न कहे कि हमने माहौल देखे बिना सिर्फ फाइल के दम पर फैसला किया था।” 23 दिसंबर की दोपहर विवादित ढांचे पर ताला लग गया। 4 पुजारी और एक भंडारी को अंदर जाने की इजाजत थी। बाकी भक्त बाहर से ही रामलला के दर्शन कर सकते थे। ताला देखकर एक युवक ने कहा- “लगा लो ताला पर ये ‘मस्जिद’ नहीं, जन्मभूमि है।” 1986: 40 मिनट में फॉलो हुआ ताला खोलने का आदेश 1 फरवरी, 1986, फैजाबाद की घड़ियां शाम के 4 बजा रही थीं। डिस्ट्रिक्ट जज कृष्ण मोहन पांडेय कोर्ट में बैठे थे। बाहर सैकड़ों की भीड़ थी। लेकिन अंदर केवल तीन लोग थे- जज पांडेय, DM इंदु कुमार पांडेय और SSP कर्मवीर सिंह। मेज पर विवादित ढांचे का ताला खोलने की याचिका थी। जज पांडेय ने दोनों अफसरों को देखकर कहा, “मैं जानता हूं कि आप दोनों अधिकारी इलाके से वाकिफ हैं। मेरा सवाल सीधा है। अगर ताला खोलने का आदेश देता हूं, तो फैजाबाद की कानून व्यवस्था का क्या होगा। आपकी रिपोर्ट क्या कहती है?” एसएसपी कर्मवीर सिंह जानते थे कि इस सवाल का जवाब दिल्ली की स्क्रिप्ट के हिसाब से होना चाहिए। कर्मवीर सिंह को पीएम के सलाहकार अरुण नेहरू ऑर्डर दे रहे थे। यूपी के सीएम वीरबहादुर सिंह को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। कर्मवीर सिंह ने कहा- “कोई परेशानी नहीं होगी। हमने इंतजाम कर लिए हैं।” शाम 4:40 बजे। जज कृष्ण मोहन पांडेय ने ताला खोलने का आदेश दिया। आदेश आने के बमुश्किल 40 मिनट बाद शाम 5:20 बजे। विवादित ढांचे के गेट पर, इंदु कुमार पांडेय और कर्मवीर सिंह मौजूद थे। लखनऊ दूरदर्शन की टीम 3 घंटे का सफर करके पहले ही वहां पहुंच चुकी थी, ताकि ताला खुलने का लाइव टेलीकास्ट किया जा सके। SSP कर्मवीर सिंह के ताला खोलते ही पूरी अयोध्या जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठी। 1989: राजीव गांधी ने कराया शिलान्यास 3 साल बाद 1989 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे। प्रधानमंत्री राजीव गांधी सत्ता के शिखर पर थे, लेकिन राजनीतिक विरोध बढ़ रहा था। उनके निजी सहायक आरके धवन ने उन्हें एक रणनीतिक चाल समझाई। धवन ने कहा, चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास करा दीजिए। अपना चुनाव अभियान भी अयोध्या से ही शुरू कीजिए। इससे भावनात्मक लहर पैदा होगी और हिंदू वोटर दिल खोलकर वोट देगा। राजीव गांधी को ये बात पसंद आई। 9 नवंबर, 1989 को अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास की तैयारियां शुरू हुईं। राज्य के नए मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी इस कदम के राजनीतिक अंजाम को लेकर डरे हुए थे। वे केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह से भी नाराज थे। तिवारी ने अपने पीए से कहा, “बूटा सिंह इस बात पर अड़े हैं कि प्रशासन प्रमाणित करे कि शिलान्यास की जगह विवादित नहीं है। जबकि ये झूठ है। वो जानते हैं कि ये विवादित जमीन है।” आखिरकार राजीव गांधी सरकार ने राम मंदिर का शिलान्यास कराया। कांग्रेस ने अपना चुनाव अभियान भी अयोध्या से शुरू किया। हजारों की भीड़ के बीच राजीव गांधी ने कहा, “हम इस देश में रामराज्य की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध हैं।” लेकिन, फिर भी 1989 का लोकसभा चुनाव हार गई। आडवाणी चिल्लाते रह गए, कारसेवकों ने ढांचा गिरा दिया मई 1992, उज्जैन संतों की बैठक हो रही थी। यहां से एक विस्फोटक संदेश दिल्ली भेजा गया कि 9 जुलाई, 1992 से अयोध्या में कारसेवा शुरू होगी। इस ऐलान ने प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार जितेंद्र प्रसाद की नींद उड़ा दी। जितेंद्र प्रसाद ने हड़बड़ी में किसी को फोन किया- “संतों को कहिए कि दिल्ली आएं, प्रधानमंत्री से मिलें। मामला एकतरफा नहीं दिखना चाहिए। वर्ना मैसेज जाएगा कि सरकार कुछ कर नहीं रही।” दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास पर महंत अवैद्यनाथ, परमहंस रामचंद्र दास और पेजावर स्वामी सहित कई संत पीवी नरसिम्हा राव के सामने बैठे थे। महंत अवैद्यनाथ ने सीधे कहा- “प्रधानमंत्री जी, एक साल हो गया। मंदिर के सवाल पर कोई गंभीर पहल नहीं हुई। हम 9 जुलाई से कारसेवा शुरू करने का फैसला कर चुके हैं। आपको केवल सूचना दे रहे, ताकि बाद में न कह सकें कि हम बिना बताए चल पड़े थे।” नरसिम्हा राव ने धीमे से कहा- “मैं भी जल्दी समाधान चाहता हूं। अयोध्या में मंदिर निर्माण चाहता हूं, लेकिन ये मुद्दा राजनीतिक हो चुका है। धर्म से जुड़ी बात धर्म के आधार पर सुलझनी चाहिए। मुझे आप सबके आशीर्वाद की जरूरत है।” परमहंस रामचंद्र दास ने कठोरता से कहा- “यह राजनीति नहीं है प्रधानमंत्री जी, राजनीतिक इच्छाशक्ति का सवाल है।” बैठक खत्म हुई, लेकिन राव ने न कारसेवा रोकने को कहा और न ही ये बताया कि वे आगे क्या करेंगे। 9 जुलाई को अयोध्या में कारसेवा शुरू हो गई। 1400 वेदपाठी पंडितों के वेदपाठ के बीच सुबह 8:40 बजे प्रस्तावित मंदिर के सिंहद्वार की नींव डाली गई। तब के भाजपा सांसद विनय कटियार और विश्व हिंदू परिषद के मुखिया अशोक सिंघल ने कंक्रीट का पहला तसला डाला। ये निर्माण राज्य सरकार की कब्जे वाली 2.77 एकड़ जमीन पर हो रहा था। केंद्र सरकार इसे अदालत की अवमानना बता रही थी। लेकिन, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह राजनीतिक ढाल लिए खड़े थे। उन्होंने कहा कि निर्माण गैर-विवादित हिस्से में हो रहा। 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमएन वैंकटचलैया ने साफ कह दिया कि अगर कोई भी पक्का निर्माण हुआ, तो उसे गिरा दिया जाएगा। इसके बाद 26 जुलाई को कारसेवा रोक दी गई। 6 दिसंबर 1992, रविवार। सुबह: सुबह 7:00 बजे। जगह: भाजपा सांसद विनय कटियार का आवास- हिंदू धाम, अयोध्या अयोध्या की फिजाएं जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज रही थीं। चारों ओर कारसेवकों का सैलाब था। विनय कटियार के घर की फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव थे। राव ने कहा- “विनय जी, आज की कारसेवा शांतिपूर्ण रहेगी न? सांकेतिक ही होगी न?”
विनय कटियार ने भरोसा दिलाया- “जो कल तय हुआ था, वही होगा, प्रधानमंत्री जी। सांकेतिक कारसेवा होगी, कानून व्यवस्था नहीं बिगड़ेगी। आप निश्चिंत रहिए।” सुबह 8 बजे लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी हिंदू धाम पहुंचे। अशोक सिंघल वहां पहले से बैठे थे। आडवाणी ने धीरे से कहा- “इतनी भारी भीड़ को प्रतीकात्मक कारसेवा में कैसे समेटेंगे? भीड़ कंट्रोल से बाहर हुई, तो क्या करेंगे?” अशोक सिंघल ने कहा- “आडवाणी जी, लोग वर्षों से प्रतीक नहीं, परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
तभी मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का फोन आया। कल्याण सिंह ने कटियार से कहा- “विनय जी, स्थिति संभालिए। कारसेवकों को काबू में रखना जरूरी है।” कटियार ने वादा दोहराया- “सीएम साहब, जो तय हुआ था, उसी के अनुरूप सांकेतिक कारसेवा होगी। हम पूरा प्रयास करेंगे।” ऑब्जर्वर, डीएम और पहला टकराव समय: सुबह 9 बजे से 12 बजे तक फैजाबाद सर्किट हाउस में डीएम, एसएसपी और सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वर तेजशंकर की बैठक चल रही थी। सुबह 9:30 बजे कारसेवा शुरू हुई। राम चबूतरे के चारों तरफ बैरिकेडिंग थी। साधु-संत पूजा सामग्री के साथ चबूतरे पर बैठ गए। तभी एएसपी अंजू गुप्ता नेताओं को लेकर विवादित स्थल की तरफ पहुंचीं। आडवाणी को देखते ही भीड़ में धारणा बन गई कि नेता पिछली बार की तरह कारसेवा रोकने या उसे सीमित करने आए हैं। उग्र कारसेवकों ने बैरिकेडिंग को धक्का देना शुरू किया। पुलिस ने डंडे चलाए, तो गुस्सा और भड़क गया। आडवाणी और जोशी के साथ धक्का-मुक्की हुई। RSS और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने किसी तरह नेताओं को रामकथा कुंज यानी मुख्य मंच तक पहुंचाया। भीड़ का मूड बदल चुका था। मंच से नेताओं के भाषण शुरू हुए। नेताओं ने प्रतीकात्मक कारसेवा की अपील की। फिर ढांचे की तरफ इशारा करके उसे ‘मुगल गुलामी का प्रतीक’ बताना शुरू किया। भाषणों ने उबलती भावनाओं पर तेल का काम किया। दोपहर करीब 12 बजे लालकृष्ण आडवाणी माइक पर आए। इसी दौरान शेषावतार मंदिर की तरफ से पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू हो गई। पुलिस खुले मैदान में थी, लगातार पत्थरों की बौछार की वजह से पीछे हटने को मजबूर हो गई। जैसे ही पुलिस हटी, करीब 200 कारसेवकों ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और दौड़ते हुए बाबरी मस्जिद कैंपस में घुस गए। विध्वंस का ‘कंट्रोल रूम’ समय: 12 बजे से 1:30 बजे तक सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर तेजशंकर राम चबूतरे पर मौजूद थे। साधु-संत हवन कर रहे थे। अचानक कारसेवकों की भीड़ हवन कुंड पर टूट पड़ी। पूजन सामग्री पैरों से रौंद दी गई। साधु-संतों ने वहां से हट जाना बेहतर समझा। तेजशंकर ने देखा, कारसेवक राम चबूतरे पर ईंट रखने के बजाय विवादित ढांचे से ईंटें निकाल रहे थे। विवादित परिसर के पास बने पुलिस वॉच टावर पर एक कारसेवक चढ़ा दिखा। पुलिस पीछे हट चुकी थी, क्योंकि उन्हें बल प्रयोग न करने का आदेश था। टावर पर कारसेवक सीटी बजाकर कारसेवकों को डायरेक्शन दे रहा था। कहां चढ़ना है, किस हिस्से पर वार करना है। वॉच टावर अब बाबरी विध्वंस का ‘कंट्रोल रूम’ बन चुका था। कारसेवकों ने टेलीफोन लाइनें काट दीं। अयोध्या का संचार तंत्र भीड़ के हवाले था। मस्जिद के गुंबदों पर हुक और रस्सियां लगाई गईं। रामकथा कुंज के मंच से लालकृष्ण आडवाणी लगातार कारसेवकों से डांटने के अंदाज में अपील कर रहे थे, लेकिन कारसेवक सब अनसुना कर रहे थे। अशोक सिंघल और महंत नृत्यगोपाल दास भी मंच से उतरकर परिसर की ओर बढ़े, लेकिन भीड़ ने उनका रास्ता रोक दिया। उनके कपड़े तक फट गए। मंच पर किसी ने लाउडस्पीकर का तार काट दिया। अब मंच की आवाज बंद हो चुकी थी। सिर्फ हथौड़े टकराने ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष गूंज रहा था। कल्याण सिंह का हठ समय: दोपहर 12:25 बजे से 2:50 बजे तक अयोध्या की खबर दिल्ली पहुंचते ही वहां हड़कंप मच गया। केंद्रीय गृह सचिव ने यूपी के डीजीपी से बात की। गृह सचिव डांटने वाले अंदाज में फोन पर बोले- “ढांचा गिराया जा रहा है। तुरंत केंद्रीय बलों का इस्तेमाल करिए।” दोपहर 12:25 बजे केंद्रीय गृहमंत्री एसबी चह्वाण ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को फोन किया। गुस्साए चह्वाण ने कल्याण सिंह से कहा- “मुख्यमंत्री जी, तुरंत केंद्रीय बलों का उपयोग कीजिए, ढांचे पर हमला हो रहा है!” कल्याण सिंह ने जवाब दिया- “मुझे अलग-अलग जानकारियां मिल रही हैं। मैं हालात पता करके आपसे बात करता हूं।” दोपहर 12:30 बजे कल्याण सिंह ने अयोध्या कंट्रोल रूम फोन किया। कल्याण सिंह का गुस्सा भी सातवें आसमान पर था। उन्होंने कहा- “बिना गोली चलाए कारसेवकों को पीछे हटाइए!” 1:30 बजे मुख्यमंत्री का लिखित संदेश अयोध्या कंट्रोल रूम को मिला- “गोली नहीं चलेगी, इसके बिना ही परिसर को खाली कराएं।” 1:50 बजे आईटीबीपी की तीन बटालियन अयोध्या रवाना हुईं, लेकिन कारसेवकों की भारी भीड़ ने उन्हें रास्ते में रोक लिया। पथराव शुरू हो गया। मजिस्ट्रेट ने सेंट्रल फोर्स को वापस लौटने का लिखित आदेश दिया। बाबरी मस्जिद के गुंबद पर लगातार बढ़ते हमलों को देखकर रामलला के पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने रामलला को बाहर लाने का फैसला किया। कारसेवकों ने रामलला को बाहर आते देखा, तो मस्जिद के गुंबद पर वार तेज हो गए। दोपहर 2:50 बजे इंटेलिजेंस ब्यूरो ने गृह मंत्रालय को रिपोर्ट दी। “ढांचे का पहला गुंबद गिर गया है। सेंट्रल फोर्स मौके पर पहुंचने में असमर्थ हैं। यूपी सरकार बिना फायरिंग स्थिति काबू में करने को कह रही, जो संभव नहीं।” आखिर में मस्जिद गिरा दी गई। सीएम कल्याण सिंह ने तुरंत बैठक बुलाई। फाइल पर गोली न चलाने का आदेश दर्ज कराया, ताकि किसी अधिकारी पर जिम्मेदारी न डाली जाए। शाम साढ़े पांच बजे उन्होंने एक लाइन का इस्तीफा लिखकर राज्यपाल को सौंप दिया- “मैं इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करने का कष्ट करें।” कल पढ़िए अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने की कहानी। *** इनपुट- राजीव नयन चतुर्वेदी ग्राफिक्स- सौरभ कुमार रेफरेंस
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