“इसलिए हम यूसीसी को सपोर्ट करते हैं, ताकि तलाक और शादियों को एक नजर से देखा जाए। अगर तलाक और शादियों को अलग-अलग नजर से देखेंगे तो इस तरीके से मुस्लिम महिलाएं कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगी। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक ए हसन पर जो सवाल उठाए हैं, वो बिल्कुल सही हैं।” ये कहना है तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ने वाली सोशल वर्कर और आला हजरत परिवार की बहू रह चुकीं निदा खान का…. तलाक ए हसन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी पर निदा खान ने खुलकर समर्थन किया। उन्होंने कहा कि एक समय हमें लगा था कि तलाक ए हसन मुस्लिम महिलाओं के लिए एक सुरक्षित विकल्प साबित होगा। इसमें महिलाओं को अपनी बात रखने और तलाक को रिवोक कराने का पूरा मौका मिलता है। लेकिन अब इसका गलत इस्तेमाल शुरू हो गया है। कई पुरुष इस प्रक्रिया को चोरी-छिपे हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। नोटिस पर महिलाओं की जवाबदेही, लेकिन मर्द गायब निदा के मुताबिक तलाक ए हसन का असली मकसद महिलाओं को न्याय दिलाना था, लेकिन हकीकत में इसका दुरुपयोग बढ़ गया है। वकील नोटिस भेज रहे हैं, जवाब महिलाओं से मांगा जा रहा है, लेकिन पुरुष इसमें कहीं भी शामिल नहीं दिखते। महिलाएं जवाब दें तो भी उसे एक्सेप्ट नहीं किया जाता और तलाक को एकतरफा आगे बढ़ाया जा रहा है। रिवोक यानी सुलह का मौका तो दिया ही नहीं जा रहा। सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा- औरत की डिगनिटी एक है, धर्म से अलग नहीं निदा खान ने साफ कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हैं। उन्होंने कहा कि जब बात वीमेंन्स डिग्निटी की होगी तो हर औरत की इज्जत बराबर है। फिर मुस्लिम महिलाएं अलग सम्मान और अलग नियमों के दायरे में कैसे जी सकती हैं। जिस तरह तलाक दिए जा रहे हैं, वह महिलाओं की गरिमा पर सीधा हमला है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस सवाल को उठाया है, वह बिल्कुल सही और समय की मांग है। तलाक 2.0-तीन तलाक पर रोक के बाद नया तरीका निकाल लिया
निदा खान ने इसे तलाक 2.0 तक कहा। उनका कहना है कि तीन तलाक गैरकानूनी होने के बाद अब तलाक ए हसन को उसी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है जैसे पहले तीन तलाक को किया जाता था-एकतरफा, बिना सुनवाई और महिलाओं की भावनाओं को नजरअंदाज करके। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर फिर दोहराया समर्थन
निदा ने कहा कि यही वजह है कि वह और कई मुस्लिम महिलाएं यूसीसी को सपोर्ट करती हैं। जब तक तलाक और शादी को एक ही नजरिये से नहीं देखा जाएगा, मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार मुश्किल है। समान कानून ही महिलाओं को सही सुरक्षा दे सकता है और समाज में उनकी बराबरी सुनिश्चित कर सकता है।
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