22 जनवरी 2024 की तारीख सभी राम भक्तों को याद है। इस दिन श्री राम मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हुआ था। मंदिर परिसर में अन्य मंदिरों और टीलों के निर्माण से पूरे परिसर को भव्यता को दर्शता है। आने वाली 25 नवंबर की तारीख यानी कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य मंदिर का पताकारोहण करेंगे। आपको बता दें कि, मुख्य मंदिर का ध्वज 22 फीट और 11 फीट का आकार का होगा। केसरिया रंग के इस ध्वज में रामायणकालीन को विदार वृक्ष और इक्ष्वाकु वंश के प्रतीक सूर्यदेव, ओंकर के साथ अंकित होंगे। इसके अलावा, परिसर में जो अन्य सात मंदिर हैं, उन सभी के ध्वज का रंग भी केसरिया होगा जिसके केंद्र में सूर्यदेव ओंकार के साथ अंकित किया जाएगा।
5 वर्ष में पूर्ण हुआ परिसर
5 अगस्त 2020 को इस विशाल और भव्य मंदिर के निर्माण की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने विधि विधान के साथ रखी थी। मंदिर की आधारशिला के दौरान 1989 में विश्वभर से आई शिलाओं की भी पूजा की गई थी और वे मंदिर की नींव में डाली गई।
आपको बता दें कि, 1989 में श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान मंदिर निर्माण हेतु दुनिया भर से पूजित शिलाएं अयोध्या भेजी गई थीं। आधारशिला रखे जाने के लगभग पांच वर्ष बाद नवनिर्मित मंदिर परिसर पूर्ण रूप से तैयार हो गया। पूरे परिसर के निर्माण में लगभग पांच लाख बीस हजार घनफुट गुलाबी सैंडस्टोन का उपयोग किया गया, जिन्हें राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से लाया गया था। इन्हीं पत्थरों ने मंदिर की भव्यता और आकर्षण को और भी बढ़ा दिया है।
जो सुमिरत सिधि होइ
प्रभु श्री राम का मुख्य मंदिर में जहां से गर्भगृह आरंभ होता है वहां सफेद संगमरमर शिलाओं पर उकेरी गई चंद्रधारी गंगा यमुना की बहुत ही सुंदर मूर्तियां है। गर्भगृह की बाई तरफ बड़े से मंडप में एक ताखे पर गणेश जी की मूर्ति है और उसके ऊपर रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ के चिन्ह बनाए गए हैं। एक ताखे में हनुमान जी की प्रणाम मुद्रा की मूर्ति के ऊपर अंगद, सुग्रीव और जामवंत की मूर्तियां बनाई गई हैं। गर्भगृह के मुख्यद्वार के ठीक ऊपर समस्त सृष्टि के पालक विष्णु भगवान की शेषनाग पर लेटी मुद्रा को पत्थर पर उकेरा गया है। साथ ही में देवी लक्ष्मी बैठी हुई है।
शेष शैया पर लेटे विष्णु भगवान के साथ ब्रह्मा जी और शिवजी की मूर्तियां भी बनाई गई है। गर्भगृह के ऊपर वाले तल पर श्रीराम दरबार स्थापित किया गया है, जबकि उसके ठीक ऊपर के तल पर एक विशाल जगमोहन निर्मित है, जो फिलहाल खाली रखा गया है। इस स्थान का आगे किस प्रकार उपयोग किया जाएगा, इसका निर्णय श्रीराम तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा लिया जाएगा।
उत्तर-पूर्व में विशाल यज्ञ मंडप
मुख्य मंदिर के उत्तर-पूर्व में विशाल यज्ञ मंडप का निर्माण किया गया है और इसके पास ही मां सीता कूप भी बनाया गया है। मंदिर परिसर में भगवान गणेश, शंकर, सूर्य भगवान, हनुमान जी, मां दुर्गा और माता अन्नापूर्णा का मंदिर भी निर्मित किया गया है। मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों ने बताया कि जहां पहले मां सीता की रसोई हुआ करती खी उसी जगह या उसके पास ही माता अन्नापूर्णा का मंदिर बनाया जाएगा।
इसके साथ ही परिसर में शेष रुप में लक्ष्मण जी की मूर्ति वाले शेषावतार मंदिर को भी नव्य स्वरुप प्रदान किया गया है। इन मंदिरों की मूर्तियों का स्केच पद्मश्री वासुदेव कामथ ने तैयार किया है और मूर्तियों का निर्माण जयपुर में करवाया गया है। यहां से प्रतिमा अयोध्या लाकर मंदिरों में स्थापित किया गया है।
सप्त मंदिरों की अनुपम शोभा
श्री राम जन्मभूमि परिसर में अत्यंत सुंदर ढंग से सप्त मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन सात मंदिरों में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि का मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महर्षि वाल्मीकि ने ही भारतीय संस्कृति के आदर्शों को आलोकित करने वाले महान ग्रंथ ‘रामायण’ की रचना की थी। इसी प्रकार सूर्यवंश के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने तपोबल से रघुवंश के नरेशों को शक्ति प्रदान की और सनातन धर्म के गौरव का विस्तार किया।
किशोर श्री राम को शिक्षित करने के लिए अपने साथ ले गए और प्रशिक्षण के दौरान महादेव से प्राप्त विविध दिव्यास्त्र श्री राम को प्रदान किए। इसके साथ ही देवी अहल्या का मंदिर बनाया गया है। महर्षि अगस्त्य को राष्ट्रसंरक्षक ऋषि कहा जाता है, उनका मंदिर भी जन्मभूमि परिसर में सप्त मंदिर में से एक है। माता शबरी और निषादराज गुह के मंदिर भी बनाए गए है।
वैष्णव परंपरा को समर्पित द्वार
जन्मभूमि परिसर के चारों द्वार वैष्णव परंपरा के प्रमुख संतों—जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य, जगद्गुरु श्री माध्वाचार्य, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य और जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य के नाम पर स्थापित किए गए हैं। मुख्य मंदिर के लोअर प्लिंथ पर वाल्मीकि रामायण की कथा के विभिन्न प्रसंगों पर आधारित चित्रांकन वासुदेव कामथ द्वारा तैयार किया गया है, जिनका परिचयात्मक लेखन यतीन्द्र मिश्र ने किया है। मंदिर परिसर में एक भव्य स्मृति स्तंभ भी बनाया गया है, जिसमें उन सभी ज्ञात और अज्ञात व्यक्तियों के नाम अंकित हैं जिन्होंने श्रीराम मंदिर के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।
भव्य स्वरूप मिला टीलों को
मंदिर परिसर में कई टीलों को भी भव्य स्वरुप प्रदान कर रहे हैं। मंदिर में श्री कुबेर टीला इनमें से एक है। धार्मिक मान्यता है कि धन-धान्य के प्रतीक स्वरुप कुबेर जी का यहां निवास है। वहीं, अंगद टीला को भी नव्य स्वरुप प्रदान किया है। जटायु की बड़ी आकृति भी मंदिर परिसर में स्थापित की गई है। रामसेतु के निर्माण में गिलहरी ने भी योगदान दिया है। मंदिर परिसर में एक स्थल का नाम है ‘पावन गिलहरी’। वहीं, तीर्थयात्री सहायता केंद्र के बिल्कुल समीप तुलसीदास जी की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई है।
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